kya pata kidhar kho gayi
एक सपने की नींव थी, जिसपे आस की इमारत थी
उस में एक छोटा घर था, जिसपे ज़िंदगी लिखी थी
तुमने नींद से जगह दिया, सपना, आस सब टूट गयी
घर भी बिखर गया और ज़िंदगी... क्या पता किधर खो गयी
तुम्हारे आंखों के समंदर में, मेरे प्यार की चोटी कश्ती थी
कश्ती में एक छोटासा अफसाना था, उसमें एक छोटीसी खुशी थी
तुमने पलके मूँद क्या ली, एक बड़ी सी लहर आई
कश्ती और खुशी तो डूब गयी और कहानी...क्या पता किधर खो गयी
तुमसे ही आंखों में आंसू थे, तुम्हारे दम से मुस्कान थी,
तुम्हारे इशारे पे धड़कन चलती थी,साँसे थम जाती थी
तुम ही चले गए ज़िंदगी से, न आंसू है न मुस्कान
धड़कन और नब्ज़ दोनों थम गए और मैं.....क्या पता किधर खो गयी
उस में एक छोटा घर था, जिसपे ज़िंदगी लिखी थी
तुमने नींद से जगह दिया, सपना, आस सब टूट गयी
घर भी बिखर गया और ज़िंदगी... क्या पता किधर खो गयी
तुम्हारे आंखों के समंदर में, मेरे प्यार की चोटी कश्ती थी
कश्ती में एक छोटासा अफसाना था, उसमें एक छोटीसी खुशी थी
तुमने पलके मूँद क्या ली, एक बड़ी सी लहर आई
कश्ती और खुशी तो डूब गयी और कहानी...क्या पता किधर खो गयी
तुमसे ही आंखों में आंसू थे, तुम्हारे दम से मुस्कान थी,
तुम्हारे इशारे पे धड़कन चलती थी,साँसे थम जाती थी
तुम ही चले गए ज़िंदगी से, न आंसू है न मुस्कान
धड़कन और नब्ज़ दोनों थम गए और मैं.....क्या पता किधर खो गयी
Labels: poem
1 Comments:
D,
Aapki kavityein pasand aayi..
Post a Comment
<< Home