Wo mai thi
उस रोज़ उदास नही मगर अकेली थी मैं
हर शक्ल में दोस्त ढूंढ रही थी मैं
कुछ पुराने कुछ नये दोस्त बना लिए
दोस्तोने कुछ नये कुछ पुराने बहाने सुना दिए
दुश्मनोंको भी कोई अदावत नही थी
वक्त गुजारने की कोई सूरत नही थी
ज़िंदगी और तन्हाई से भी बातें करके देखि
वो भी मेरी बातें सुनके अनसुनी कर गयी
तब मेरे कानोंपे एक आहट पड़ी
एक शक्सियत मेरी तलाश में दिख पड़ी
उसने मुझसे बात करने की कोशिश की
मैंने बहाने बनाके बात ताल दी
अब उसके साथ रोजकी आँख-मिचौली शुरू थी
वो मुझे ढूँढती और मैं उससे चुप्ती थी
कई बार दिख जाती थी वो दोस्त बनाते हुए
उसके दोस्त दिखते थे नये बहाने बनाते हुए
एक रोज़ मैंने उसे समझाया इस तलाश का कोई मतलब नही है
न साया, न ज़िंदगी, किसीका भी साथ हमेशा नही है
उस रोज़ उदास नही मगर अकेली थी वो
न दोस्त, न दुश्मन, खुदको ढूंढ रही थी वो
Labels: poem
1 Comments:
AWESOME!
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